बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.
जिन्हें तकिए बिन नींद ना थी आती
आकर कोई देखे अब कहीं भी अब सो जाते हैं!
सब्जी में मिर्च तेज है माँ
अब जैसा बन जाए खा लेते है!
अलग बिस्तर, अलग कमरा मिले तो नींद आये
अब एक बिस्तर पर 4-5 एडजस्ट हो जाते है!
बेटे भी घर छोड़ जाते हैं.!!
घर तो जैसे नम आँखों में बसा है
पर जुबाँ कहती हैं ‘बिल्कुल ठीक हूँ '!
सौ-सौ ख्वाहिश रखने वालों को
अब ‘कुछ नहीं चाहिए ' कहते सुना है
पैसे कमाने की जरूरत में बने घर भी अजनबी!
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं!!
बना बनाया मिलता था जिनको
वो खाना खुद बनाते है,.
माँ-बहन-बीवी का बनाया
अब वो कहाँ खा पाते है
थक हार वो कभी कभी अब भूखे भी सो जाते हैं!
लड़के भी घर छोड़ जाते है!!
मोहल्ले की गलियां,
जाने-पहचाने रास्ते,
जहाँ दौड़ा करते थे
अपनों के वास्ते,,,
माँ बाप यार दोस्त
सब पीछे छूट जाते हैं
तन्हाई में करके याद,
लड़के भी आँसू बहाते है.
सुनो! लड़के भी घर छोड़ जाते हैं!
नई नवेली दुल्हन,
जान से प्यारे बहिन- भाई,
छोटे-छोटे बच्चे,
चाचा-चाची, ताऊ-ताई ,
सब छुड़ा देती है साहब,
ये रोटी और कमाई।
मत पूछो इनका दर्द
वो कैसे छुपाते हैं,
बेटियाँ ही नही बेटे घर छोड़ जाते हैं!
सुना ना! बेटे भी घर छोड़ जाते हैं!
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