📜 इतिहास के नायक जिन्हें किताबों में जगह नहीं मिली: गोपाल 'पाठा' 🙏🏼
🇮🇳 1946 – Direct Action Day के बाद जब कोलकाता और बंगाल में हजारों हिंदुओं का जनसंहार हो रहा था, तब एक नाम सामने आया जिसने हिंदू समाज की रक्षा के लिए खुद को समर्पित कर दिया — गोपालचंद्र मुखर्जी, जिन्हें लोग गोपाल पाठा के नाम से जानते हैं।
🪓 गोपाल पाठा एक साधारण कसाई थे, लेकिन जब उन्होंने देखा कि हिंदुओं को योजनाबद्ध ढंग से मारा जा रहा है, उनकी स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है — उन्होंने अन्य युवाओं को संगठित किया और एक दृढ़ संकल्प लिया: "अब हर हिंदू की रक्षा करनी है।"
🛡️ उन्होंने आत्मरक्षा के लिए स्थानीय हिंदुओं को एकजुट किया, हथियार दिए, और अपने इलाके में प्लानिंग से हमला रोकने का काम किया। कोलकाता में मुसलमान लीग द्वारा फैलाई गई हिंसा को यदि कहीं पर रोका गया, तो उसमें गोपाल पाठा का बड़ा योगदान था।
💥 उनका यह साहस ही था कि "डायरेक्ट एक्शन डे" के अगले दिन से ही मुसलमानों के बीच डर फैल गया, कि हिंदू अब सिर्फ मरने के लिए नहीं खड़े रहेंगे, लड़ेंगे भी।
🙏🏼 गोपाल पाठा ने कभी अपनी देशभक्ति का ढिंढोरा नहीं पीटा। न उन्हें कोई अवार्ड मिला, न किसी स्कूल की किताब में उनका नाम है, लेकिन हर बंगाली हिंदू आज भी उन्हें श्रद्धा से याद करता है।
🕯️ आइए आज ऐसे महानायक को याद करें, जिन्होंने धर्म, संस्कृति और समाज की रक्षा के लिए अपना जीवन दांव पर लगा दिया।
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