भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए - ज़ाकिर खान

भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए
तुम से कहीं मिला हूँ मुझे याद कीजिए

कौन जाने कि इक तबस्सुम से
कितने मफ़्हूम-ए-ग़म निकलते हैं

कितनी पामाल उमंगों का है मदफ़न मत पूछ
वो तबस्सुम जो हक़ीक़त में फ़ुग़ाँ होता है

मार डाला मुस्कुरा कर नाज़ से
हाँ मिरी जाँ फिर उसी अंदाज़ से

मैं भी हैरान हूँ ऐ ‘दाग़’ कि ये बात है क्या
वादा वो करते हैं आता है तबस्सुम मुझ को

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