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भोपाल : ये  झीलों  का शहर है - शायरी
शाम से आँख में नमी सी है, आज फिर आप की कमी सी है - गुलज़ार
भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए - ज़ाकिर खान
एक ही मुश्दा सुभो लाती है - जॉन एलिया
कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए - दुष्यंत कुमार
अम्मा - अलोक श्रीवास्तव
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं - गुलज़ार
कुरान हाथों में लेके नाबीना एक नमाज़ी - गुलज़ार
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते - गुलज़ार
उसके पहलू से लग के चलते हैं - जॉन एलिया
हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई - जॉन एलिया
लौ-ए-दिल जला दूँ क्या - जॉन एलिया
कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे - जॉन एलिया
उम्र गुज़रेगी इम्तहान में क्या - जॉन एलिया
अब जुनूँ कब किसी के बस में है - जॉन एलिया
तेरी हरबात मोहब्ब्त में गंवारा करके — डॉ. राहत इन्दौरी
इश्क में जीतके आने के लिये काफी हूं — डॉ. राहत इन्दौरी
सियासत में जरूरी है रवादारी समझता है — डॉ. राहत इन्दौरी
नई हवाओं की सौहवत विगाड़ देती है — डॉ. राहत इन्दौरी
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया — डॉ. राहत इन्दौरी