नई हवाओं की सौहवत विगाड़ देती है — डॉ. राहत इन्दौरी


नई हवाओं की सौहवत विगाड़ देती है
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है

जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते
सजा न देके अदालत बिगाड़ देती है

मिलाना चाहा है इंसा को जो भी इंसा से
तो सारे काम सियासत विगाड़ देती है

हमारे पीर तकीमीर ने कहा था कभी
मियां ये आशिकी इज्जत विगाड़ देती है

डॉ. राहत इन्दौरी

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