इसके अमन में न कोई बो सका ज़हर है
यहां बशीर बद्र की ग़ज़लें, मन को सुकनू देती हैं
यहां दुष्यंत की कविता का, दिलों पर असर है
फिज़ा भी बाशिंदों के, मिजाज़ से बदलती है
यहां की गंग-ओ-जमनी तहज़ीब अमर है
यहां सियासत भी बड़े सलीक़े से की जाती है
इसलिये यहां देश और दुनिया की नज़र है
जो एक बार यहां आया, बस यहीं का हो गया
ये दुनिया भर के परिंदों का पसंदीदा शहर है
यहां कोई छोटा-बड़ा नहीं, कोई मज़हबों में बंटा नहीं
यहां ईद और दिवाली का आलम शाम-ओ-सहर है
यहां दीवारें घरों में होतीं हैं, दिलों में नहीं होतीं
ये भोपाल है जनाब, मोहब्बतों का शहर है
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