हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान


एक ऐसा शासक जिसने न केवल अपने राज्य के लिए युद्ध लड़ा बल्कि अपनी प्रजा की सेवा के लिए भी तत्पर
रहा। वैसे तो इतिहास के पन्नों में पृथ्वीराज चौहान के कई किस्से हैं। लेकिन एक किस्सा ऐसा भी है जिसकी वजह से वे हमेशा के लिए अमर हो गए।



अपने ही दुश्मन मुहम्मद गोरी द्वारा अंधे किए जाने के बाद भी उन्होंने शब्दभेदी बाण से उसे ही मार गिराया था। इतिहास में पृथ्वीराज चौहान की वीरता का व्याख्यान कई जगह पढऩे को मिलता है।

पृथ्वीराज के मित्र और राजकवि चंदबरदाई ने
पृथ्वीराज रासो में उनके जीवन के ऐसे ही पहलुओं को उजागर किया था, ये किस्से सैंकड़ों बरस पहले जितने मशहूर थे, आज भी उसी चाव से राजस्थान सहित सम्पूर्ण भारत वर्ष में कहे जाते हैं।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी को कई बार पराजित किया। गोरी ने इस अपमान का बदला लेने के लिए ११९२ में तराइन के मैदान में धोखे से पृथ्वीराज को कैद कर अपना मुल्क ले गया। वहां पृथ्वीराज के साथ अत्यन्त ही बुरा सलूक किया गया। उसकी आंखें गरम सलाखों सेजला दी। लेकिन पृथ्वीराज ने तब भी हार नहीं मानी। दुश्मन के दांत कैसे खट्टे किए जाते हैं वे इससे पूरी तरह से वाकिफ थे। अंधे होने के बावजूद गोरी को शब्दभेदी बाण से मार गिराया। यह करने वे इसलिए सफल हुए क्योंकि राजकवि चंदबरदाई की यह योजना थी। चंदबरदाई ने गोरी तक तीरंदाजी कला के प्रदर्शन की बात पहुंचाई। गोरी ने इसके लिए मंजूरी दे दी। कहा जाता है गोरी के शाबास लफ्ज के उद्घोष के साथ ही भरी महफिल में अंधे पृथ्वीराज ने गोरी पर शब्दभेदी बाण चलाया था। इसके बाद दुश्मन के हाथ दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक-दूसरे का वध कर दिया।

अजमेर (अजयमेरु) के चौहान राजवंश में हिन्दशिरोमणि सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जन्म हुआ। वे अपने पिता की शादी के पूरे १२ साल बाद११४९ में जन्मे थे। अजमेर रियासत की राजनीति में अचानक खलबली मच गई। अब चौहान राजवंश निसंतान नहीं रहा। रियासत की बागडोर संभालने के लिए नन्हें पैरों के कदम इस आंगन में पड़ चुके थे। ये कोई और नहीं पृथ्वीराज चौहान थे। इन्हें राय पिथौर भी कहा जाता है। हालांकि जन्म के बाद से ही उन्हें मारनेके लिए कई हमले हुए, लेकिन दुश्मनों को हरबार मुंह खानी पड़ी। बचपन से पृथ्वीराज तीर और तलवारबाजी के शौकीन थे। बाद में चलकर इसी बालक ने युद्ध मैदान में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए।जो इतिहास में महान हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के नाम से प्रसिद्ध हुए।

११६६ से ११९२ तक दिल्ली (लालकोट) और अजमेर (अजयमेरु) की हुकूमत पृथ्वीराज चौहान के हाथों में थी।वे चौहान वंश के हिंदू क्षत्रिय राजा थे, जिनका उत्तरी भारत में एक क्षत्र राज करते थे। मतों के अनुसार इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी ने १८बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था। जिसमें 17 बार गोरी को पराजित होना पड़ा। हालांकि इतिहासकार युद्धों की संख्या के बारे में तो नहीं बताते लेकिन इतना मानते हैं कि गौरी और पृथ्वीराज में कम से कम दो भीषण युद्ध हुए थे। जिनमें प्रथम में पृथ्वीराज विजयी और दूसरे में पराजित हुआ था। वे दोनों युद्ध थानेश्वर के निकटवर्ती तराइन या तरावड़ी के मैदान में ११९१ और ११९२ में हुए थे।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान एक महत्वाकांक्षी राजा थे। 
साम्राज्य विस्तार से लेकर सुव्यवस्था पर पृथ्वीराज की पैनी नजर थी। उन्होंने सबसे पहले अपने संबंधियों के विरोध का दमन किया। फिर राज्य के विस्तार की ओर कदम बढ़ाया। राजस्थान के कई छोटे राज्यों को अपने साथ में करने के बाद बुंदेलखंड पर चढ़ाई की। महोबा के निकट एक युद्ध में चंदेलों को पराजित किया।

इतिहासकारों केअनुसार इस युद्ध में चंदेला पर मिली विजय के बावजूदपृथ्वीराज ने राज्य को पुनः चन्देलों को सौप दिया, इसके बादगुजरात पर आक्रमण किया। लेकिन गुजरात केशासक भीम द्वितीय ने पृथ्वीराज को मात दी।इस पराजय से बाध्य होकर पृथ्वीराजको पंजाब तथा गंगा घाटी की ओर मुडऩा पड़ा।

इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज की सेना में तीन सौ हाथी और तीन लाख सैनिक थे। जिसमें बड़ी संख्या में घुड़सवार भी थे। पृथ्वीराज इसी सैनिकों के बदौलत कई राज्यो पर विजय प्राप्त कर अपनी विजय का परचम लहराया। इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज और गोरी के बीच दो भीषण युद्ध हुए। जिसमें पहला युद्ध ११९१ में पृथ्वीराज ने मुस्लिम शासक सुल्तान मोहम्मद शहाबुद्दीन गोरी को हराया। अगले साल गोरी ने फिर से हमला किया, इस युद्ध में धोख़े से पृथ्वीराज को हरा दिया और बंदी बना लिया गया।

ये दोनों युद्ध तराइन के युद्ध के नाम से जाना जाता था। इसके बाद अजमेर और दिल्ली सल्तनत मुसलमान शासकों के नियंत्रण में आ गया। दिल्ली स्थित रायपिथौरा किला पृथ्वीराज द्वारा बनाया गया था। इसे पिथौरागढ़ के नाम से जाना जाता है। इस किले पर फतेह करना मुसलमान शासकों के लिए एक गर्व की बात थी।

इतिहासकारों के अनुसार तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज की पराजय हुई थी। हालांकि इस युद्ध में पृथ्वीराज के योद्धाओं ने मुसलमानी सेना पर भीषण प्रहार कर अपनी वीरता का परिचय दिया था। लेकिन फिर भी गोरी के सैनिकों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया।

युद्ध में पराजित होने के बाद पृथ्वीराज की किस प्रकार मृत्यु हुई। इस विषय में चंदबरदाई द्वारा लिखित "पृथ्वीराज रासो" कविता में पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर लिखा गया है। इसमें कई ऐसे बिंदु है जिसका साक्ष्य नहीं मिलता है। लेकिन चंदबरदाई के कविता में पिरोई जीवनी में इस अपमान का बदला किस तरह लेते हैं।

इसका वर्णन किया गया है। चंदबरदाई के कहने पर ही गौरी ने तीरंदाजी कौशल प्रदर्शित करने के लिए सहमति दी थी। पृथ्वीराजको दरबार में बुलाया गया। वहां गोरी ने पृथ्वीराज से उसके तीरंदाजी कौशलको प्रदर्शित करने के लिए कहा। चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को कविता के माध्यम से प्रेरित किया।

जो इस प्रकार है...
"चार बांस चौबीसगज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान।"

इसी शब्दभेदी बाण केद्वारा पृथ्वीराज ने आंकलन करके बाणचला दिया। जिसके फलस्वरूप गोरी का प्राणांतहो गया।


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