चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना डाला
मेरी आअवारगी ने मुझको, आवारा बना डाला
बड़ा दिल्कश बड़ा रँगीन है यह शहर कहते हैं
यहाँ पर हैं हज़ारों घर घरों में लोग रहते हैं
मुझे इस शहर की गलियों का बंजारा बना डाला
चमकते चाँद को ...
मैं इस दुनिया को अक्सर देख कर हैरान होता हूँ
न मुझसे बन सका छोटा सा घर दिन रात रोता हूं
खुदाया तूने कैसे ये जहां सारा बना डाला
चमकते चाँद को ...
मेरे मालिक मेरा दिल क्यूं तड़पता है, सुलगता है
तेरी मर्जी, तेरी मर्जी़ पे किसका जो़र चलता है
किसी को गुल, किसी को तूने अंगारा बना डाला
चमकते चाँद को ...
यही आग़ाज़ था मेरा, यही अंजाम होना था
मुझे बरबाद होना था, मुझे नाकाम होना था
मेरी तक़दीर ने मुझको, तक़दीर का मारा बना डाला
चमकते चाँद को ...
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गीत : चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना डाला
चित्रपट : आवारगी (१९९०)
संगीत : अनु मलिक
गीतकार : आनंद बक्षी
स्वर : ग़ुलाम अली
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