ज़िन्दगी तुझसे हर कदम पर समझौता क्यों किया जाये!

ज़िन्दगी तुझसे हर कदम पर समझौता क्यों किया जाये! 
शौक जीने का है मगर इतना भी नहीं की मर मर के जिया जाये! 

जब जलेबी की तरह उलझ ही रही है तू ऐ जिंदगी, 
तो फिर क्यों न तुझे चाशनी मे डुबाकर मजा ले ही लिया जाए! 

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