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हिन्दी कविता
अभी चलता हूँ रस्ते को मैं मंजिल मान लू कैसे - डॉ. कुमार विश्वास
अभी चलता हूँ रस्ते को मैं मंजिल मान लू कैसे - डॉ. कुमार विश्वास
Anonymous
September 29, 2017
अ
भी चलता हूँ रस्ते को मैं मंजिल मान लू कैसे
मसीहा दिल को अपनी जिद का कातिल मन लूँ कैसे
तुम्हारी याद के आदिम अँधेरे मुझको घेरे हैं
तुम्हारे बिन जो बीते दिन उन्हें दिन मान लू कैसे
- डॉ. कुमार विश्वास -
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