सारे गुलशन में तुझे ढूंढ के - डॉ. कुमार विश्वास

सारे गुलशन में तुझे ढूंढ के मैं नाकारा
अब हर एक फूल को ख़ुद अपना पता देता हूँ
कितने चेहरों में झलक तेरी नजर आती है
कितनी आँखों को मैं बेबात जगा देता हूँ

एक दो दिन मे वो इक़रार कहाँ आएगा
हर सुबह एक ही अख़बार कहाँ आएगा
आज बाँधा है जो इनमें, तो बहल जाएंगे
रोज़ इन बाँहों का त्यौहार कहाँ आएगा

आप की दुनिया के बेरंग अंधेरों के लिए
रात भर जाग कर एक चाँद चुराया मैंने
रंग धुंधले हैं तो इनका भी सबब मैं ही हूँ
एक तस्वीर को इतना क्यूँ सजाया मैंने

ये महज पल है तो इक पल में ही टल जायेगा
और अगर जादू है तो आज भी चल जायेगा
मेरी मिट्टी का खिलौना मुझे वापस कर दो
जिस्म बच्चा है खिलौने से बहल जायेगा

- डॉ. कुमार विश्वास -

Post a Comment

0 Comments