अजब है क़ायदा दुनिया-ए-इश्क़ का मौला - डॉ. कुमार विश्वास

अजब है क़ायदा दुनिया-ए-इश्क़ का मौला
फूल मुरझाये तब उस पर निखार आता है
अजीब बात है तबीयत ख़राब है जब से
मुझ को तुम पे कुछ ज्यादा प्यार आता है

माँ, बहन, बेटी या महबूब के साए से जुदा
एक लम्हा न हो, उम्मीद करता रहता हूँ
एक औरत है मेरी रूह में सदियों से दफन
हर सदा जिस की, मैं बस गीत करता रहता हूँ

एक-दो रोज़ में हर आँख ऊब जाती है
मुझ को मंज़िल नहीं, रस्ता समझने लगते हैं
जिन को हासिल नहीं वो जान देते रहते हैं
जिन को मिल जाऊँ वो सस्ता समझने लगते हैं

तूने तो तर्क़ किया ख़ुद ही त‘अल्लुक़ मुझ से
दिल मगर मेरा रखे तुझ से वास्ता क्यूँ है
तुझ को जाना है मुझे छोड़ के, मालूम है मुझे
तू रूठने के बहाने तलाशता क्यूँ है...

- डॉ. कुमार विश्वास -

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