धुआँ बनाके फ़िज़ा में उड़ा दिया मुझको

धुआँ बनाके फ़िज़ा में उड़ा दिया मुझको
मैं जल रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको

खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिये
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझको

सफ़ेद संग की चादर लपेट कर मुझ पर
फ़सिल-ए-शहर में किसने सजा दिया मुझको
(संग = पत्थर), (फ़सिल-ए-शहर = शहर की चारदीवारी)

मैं एक ज़र्रा बुलन्दी को छूने निकला था
हवा ने थम के ज़मीं पर गिरा दिया मुझको

- नज़ीर बाकरी - 

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